Dada Shyam Bhajan || Meera bhagwan || satguru milne se jagda khatam ho gaaya

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Vaani




















गुरू प्रामिला भगवान जी

‘‘्यब्द निकले है करने को ब्यान उनको,
जिन्होने ही यह ्यब्द उपहार दिए है,
बेनकाब हम क्या कर पाँएगे उनको,
जिन्होने सभी के चेहरे बेनकाब किए है,
दास्ताँ उनके जीवन की क्या मै तुम्हे सुनाऊँ,
जिन्होने सबको जीवन ही दान दिए है
बैठा हूँ कागज पर लकीरों से चित्र बनाने उनका
जिन्होने हमारे जीवन के चित्र में रंग भर दिए है
्यब्दों के दरिया में खो गया हूँ मै ही
पर उनको ब्यान करने को ्यब्द भी कम पडे है ।।

साकार, आनंद स्वरूप, ्यांत स्वरूप, प्रका्य स्वरूप, प्रेम स्वरूप, अवतार, ममतामयी हमारे प्रिय गुरूवर-हम सब के श्री प्रामिला भगवान (गुरू जी) ।। हर एक अवतार की जीवनी का वर्णन उनके अवतरण का दिवस वो है जब वह छुपके से हमारे जीवन में आए - (खुदा-खुदआ) - एक साधारण, मोहित, सुंदर, सख्त रूप धारण करके ।  उनका हमारे जीवन में आना, हृदय में आना ही उनका अवतरण है जो आज भी नित निराकार रूप में हो ही रहा है । वह कोई एक दिन नही न्यिदिन है । हम सभी के जीवन की ्युरूवात ही सही मायने में उनसे मिलने के बाद से हुई । उनसे मिलने से पहले ्यरीर था जड जो मुर्दे की तरह था पर जैसे यह ्यरीर आत्म ्यरीर आत्म ्यक्ति में बिना जड है उसी तरह यह जीवन प्रका्य रूप, प्रेम रूप गुरू के बिना जड है ।

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गुरू माना मु्र्यिद । गुरू माना भक्ति । गुरू माना प्रेम । गुरू माना ज्ञान । गुरू माना जीवन । गुरू माना महर । गुरू माना ससांर । गुरू माना अवतार । गुरू माना आत्मा । गुरू माना परमात्मा । गुरू माना ब्रहमा । गुरू माना विश्णु । गुरू माना ्यिव । गुरू माना हाजरा हजूर । गुरू माना घ्यान । गुरू माना ्यब्द । गुरू माना अनुभव । गुरू माना अनुभूति । गुरू माना सुर्य । गुरू माना जल । गुरू माना धरती । गुरू माना आका्य । गुरू माना नाँव । गुरू माना तलवार । गुरू माना दिल । गुरू माना काजल । गुरू माना बादल । गुरू माना जीवन । गुरू माना र्द्यन । गुरू माना राह । गुरू माना विरह । गुरू माना विचार । गुरू माना समझ । गुरू माना सादगी । गुरू माना विज्ञान । गुरू माना इन्द्र । गुरू माना इन्द्रिय । गुरू माना भाव । गुरू माना श्रद्धा । गुरू माना व्यिवास । गुरू माना सर्मपण । गुरू माना अपनापन । गुरू माना भगवत् भाव । गुरू माना आरम्भ । गुरू माना अंत । गुरू माना दर्द । गुरू माना अश्रु । गुरू माना मित्र । गुरू माना एहसास । गुरू माना स्वांस । गुरू माना मै । गुरू माना तुम । गुरू माना सागर । गुरू माना गागर । गुरू माना न्यिचय । गुरू माना परिचय । गुरू माना प्राप्ति । गुरू माना ्यांति । गुरू माना आनन्द । गुरू माना सुर । गुरू माना तपस्या । गुरू माना जीत । गुरू माना हार । गुरू माना निर्भयता । गुरू माना जाग्रति । गुरू माना न्या । गुरू माना राजा । गुरू माना ए्यवर्य । गुरू माना सौंदर्य । गुरू माना माया । गुरू माना काया । गुरू माना साया । गुरू माना छाया । गुरू माना मुस्कान । गुरू माना मेल । गुरू माना ममता । गुरू माना समता । गुरू माना जुनून । गुरू माना खु्यबू । गुरू माना मिट्टी । गुरू माना बीज । गुरू माना फल । गुरू माना बहार । गुरू माना इकरार । गुरू माना दृश्टि । गुरू माना सहजता । गुरू माना पुरड्ढार्थ । गुरू माना निस्वार्थ । गुरू माना होनापना । गुरू माना ्युद्धता । गुरू माना निर्मलता । गुरू माना निमाणापन् । गुरू माना निरंजन । गुरू माना आसरा । गुरू माना निराधार । गुरू माना स्वांस । गुरू माना प्रयास । गुरू माना निध्यासन । गुरू माना ्यक्ति । गुरू माना अस्तित्व । गुरू माना तत्व । गुरू माना निराकार । गुरू माना साकार । जिनका होना ही अपने अस्तित्व को ब्यान करे वही सच्चा गुरू है । कितने ्यास्त्रों, वेदों और पुराणों ने गुरू की महिमा गाई है और अतः सब नेति नेति कहकर थक गए क्योंकि उसका अंत नही है । गुरू हर एक हदृय में प्रेम व अनुभूति बनकर समाया है । हर एक का गुरू के साथ अपना अनुभव है । अपना प्रेम है, अपना संग है, अपना र्द्यन है, अपना दीदार है और हर एक की अपनी महिमा है हम सब को जो उनसे मिला है वह उनकी महिमा है और प्रेम है जो बेअंत है । ‘‘कलम लिख-लिख के हारी है, जुबान गा-गा के हारी है, जमीन आसमान से ऊँची, गुरू महिमा तुम्हारी है ।’’ यहां कुछ ्यब्द केवल उनकी महिमा, जीवन, प्रेम और गरिमा का एक इ्यारा है । यह समुद्र की एक बूँद के समान है । जैसे बार्यि में बरसी बूँदों की गिनती नही है, समुद्र की उमडती लहरों की गिनती नही है, सूर्य के द्वारा दी किरणों की गिनती नही है, वृक्ष में लगे फलों की गिनती नही है, फूल में लगी पँखडियों की गिनती नही है, जैसे ्यरीर में स्वासों की गिनती नही है ऐसे ही गुरू की कृपा की, प्रेम वर्ड्ढा की, ज्ञान प्रका्य की, महिमा की गिनती नही है ।

‘‘्यब्द कर सकेगे कुछ ब्यान, बाकी तो तेरा एहसास है, तू हर पल दिल की प्यास है, दूर होकर भी तू पास है’’ । गुरू जी अपने मुख से बोलते थे कि अवतार एक बडे जहाज की तरह होता है जो छोटी-छोटी क्यितियों को भी पार लगा देता है । पता नही कितनों को उन्होने किष्ती पर बिठाया, कितनों को क्यिती ही बनाया और कितनी किष्तियों को अपने संग पार लगाया । उनका पूरा जीवन निड्ढकाम और निस्वार्थ प्रेम की मिसाल है । उनसे ही हम सभी ने गुरू महिमा और गुरू भक्ति का पाठ सीखा । उनकी ही आँखों से गीता भगवान का, दादा भगवान का र्द्यन किया और उनके गुण रहस्य जाने । उनका कोई दिन, कोई पल, कोई पर्व, गुरू महिमा के बिना नही गया । वह उनकी बात ऐसे करते थे जैसे उनके समक्ष वह हर समय प्रगट है और वह उनका वर्णन कर रहे हैं। अपने इस अध्यात्मिक क्रांतिकारी जीवन की ्युरूआत में उन्होने गुरू का संग लगातार किया और कितने वर्ड्ढ गुरू भक्ति व तप में गुज़ारें । फिर गुरू आज्ञा से ही जब उन्होने निड्ढकाम की राह की ्युरूआत की तो उसे भी गुरू सेवा व गुरू के संदे्य व प्रेम को सर्व एक पहुँचाने के भाव से अपने सर्व सुखों की आहुति इस निड्ढकाम यज्ञ में लगा दी । दादा जी के एक इ्यारे से ही नौकरी की ंचचसपबंजपवद फाड़ दी और बेसुध चल पडे एक फकीर की तरह । भीतर से बाद्याह बाहर से फकीर (त्यागी) । वह स्वंयम सर्व कला सम्पूर्ण थे । एक तरफ पूर्ण न्यिचय, खुनकी, निर्भयता, बाद्याही और दूसरी और करूणा, प्रेम, सेवा और निमाणापन । ऐसे अदभुद और आलौकिक रंगों से वह भरे थे जो एक साधारण में असंम्भव है । जैसे निराकार ने एक ्यरीर में 5 तत्वों को एकत्रित किया है चाहे इन पांचों के स्वभाव संस्कार मिले न मिले (जल-अग्नि) उसी तरह वह पूर्ण साकार, उनमें ऐसे अदभुत गुणों व ्यक्तियों के मिश्रण थे । बाहर से उन्हे जान पाना, समझ पाना असम्भव था । उन्होने सत्य के सिवा कोई बात ही कभी नही की । उनके मुख से आत्मा के सिवा कोई बात ही नही । एक तरफ पुर्ण खुनकी से आत्मा की दहाड और दूसरी तरह प्रेम व नम्रता से सभी को बढाना । बच्चे, बूढों और जवान सभी उनके रंग मे ढल जातें । सब कें साथ वह उनके जैसे होकर बात करते तो उसमे अपनापन छलकता । उनका जीवन एक बाती की तरह था । जैसे मोमबती का धागा होता है जो ्युरूवात से अंत तक जलता ही रहता है और सभी को प्रका्यित करता है । उनका जीवन एक तप था । पहले गुरू के आगे मिटे फिर जिनको ज्ञान देकर जाग्रत भी किया उनके आगे ब्ीतपेज की तरह झुकते चले गए । जैसे अपने लिए तो उनको कोई भाव ही नही था । सभी की प्रसन्नता मे उनकी प्रसन्नता थी । उनके एक जीवन से सभी ब्रहमज्ञानियो की झलक प्राप्त होती थी । त्याग रामकृश्ण सा, खुनकी रामतीर्थ जैसे, तेजस्व भगवान कृश्ण व राम सा, खुमारी नानक सी, भक्ति मीरा सी, सादगी रविदास जैसी ए्यवर्य जनक जैसा, कुर्बानी ब्ीतपेज जैसी । हर भाव, हर रंग, हर उतर उनका जीवन ही है । उनका कोई मुकाबला नही था अपने जैसा ्यायद भगवान एक ही स्वंयम बन के आया । ‘‘तुम सा ना कोई था, न है, ना होगा ।’’

किसी ने किसी माध्यम से वह सभी को भरपूर करने मे लगे थे । कभी ्यहरों का, गांवों का रटन किया, कभी कुंज गलियों में कृश्ण की तरह ज्ञान बांसुरी प्रेम बांसुरी बजाकर सभी गोपियों को उनके घरों से निकाला, कभी घर जा कर सभी के आंसु धोए, कभी पत्रों से तारा, कभी अलग एक के साथ बैठकर मेहनत की, कभी किसी न किसी रूप में अपने प्रेम व संदे्य भेजा । अंत तक वह लिखने, पढ़ने मे लगे रहे । कोई कितनी भी भूलें कर उन तक पहुँचता तो भी प्यार और सतकार ही मिलता । कोई भी पौधा उनके प्रेम रूपी जल, ज्ञान रूपी प्रका्य, ममता रूपी धरती की गोद और प्यार व संभाल के बिना नहीं रहा चाहे आज वह कितने पौधे वृक्ष बन कर फल दे रहे हैं । वह कहते थे दादा जी ने गीता भगवान ने मेहनत की, फल हम सभी खा रहे हैं और आज उनके लिए भी ऐसा ही महसूस होता है । उन्होने ज्ञान को ही केवल सरल व सहज नहीं बनाया पर ज्ञान प्राप्त करने हेतु बाहर के तल पर जिन कठिनाईयों का उनको सामना करना पडा (जैसे रहने की जगह का ना होना गुरू के पास, सतसंग के लिए स्थान की कमी होना) वह सभी सुविधाएं भी हम सभी को अपने ही घर में दी तांकि सभी का मन अच्छे से ज्ञान में लग सके । तन, मन, धन से उन्होने सर्व के लिए यज्ञ किया । उनके यज्ञ का कोई मोल नही था और आज हम सभी  जो स्वांस ले रहे हैं, जो ्यांति और संतोड्ढ से जीवन व्यतीत कर रहे हैं, जो आनंद की अनुभूति कर रहे हैं, जो अनुभव कर रहे हैं और न्यिचय को प्राप्त हुए हैं वह उनकी ही मेहनत व प्रेम का परिणाम है ।

्यब्द कम है, ्यायद भाव आप सभी के इन ्यब्दों में न समा पाए पर ्यायद यह कहना गलत नही होगा कि हम सभी का जीवन उनकी महिमा के सिवा कुछ नही है जो कोई हर भक्त महसूस करता है आज भी वह उन्हीं का दिया है ।

हम सभी यह संकल्प ले कि उनके प्रेम को हर दिल में जाग्रत करते चलेगे ताकि हमारे गुरू-वर, हमारे साकार भगवान की याद व महिमा कयामत तक चलती रहे ।

ओम्